Saturday, July 7, 2012

बारिश के आने का तो हर कोई इंतजार करता है. लगता है छम छम करते आएगी. 
खूब गिरेगी. पहले धरती को, पेड़ों को, नदियों  को और फिर हमारे मन को भिगो देगी.
पर अभी तक आई नहीं.जाने क्यों रूठी हुई है कहाँ बैठी है?
 हम भी जानते हैं ज्यादा देर नहीं रूठेगी. आ ही जाएगी. 
पर इस बार उसके आने के पहले बड़ी आंधी आई. सब कुछ हिला दिया. 
कहीं होर्डिंग गिरे तो कहीं खम्बे. सैकड़ो पेड़ भी जमीं से जा मिले.
मोटे मोटे तने के पेड़ ऐसे कैसे गिर सकते हैं? पता नहीं आदमी ने उसकी जड़ों से क्या कह दिया
कि उनने साथ ही छोड़ दिया. अब  गिरे हुए पेड़ों से नाराज है आदमी.
उनके गिरने से सड़क भर गयी. आना जाना बाधित हो गया. 
घंटो बिजली ही न रही. न ठंडी हवा, न TV , 
मोबाइल भी discharge हो  गए. मानो जीवन की गति ही रुक गयी. 
नाराज है आदमी. उसने दूसरे ही रोज अपने आस पास के पेड़ों  का इलाज शुरू कर दिया .....
क्या कहूं पेड़ तुम तो पहले ही गायब हो रहे थे और अब ... अब तो सब तुमसे नाराज़ हो चले..
तो क्या तुम चले ही जाओगे ???
रुको!!! तुम्हे ही रोक सकती हूँ ... आदमी को नहीं... वो नहीं सुनते.. 
तुम तो सुनो तुम चले जाओगे तो जीवन से संगीत ही चला जायेगा
चिड़िया कहाँ बैठेगी...कहाँ गाना गाएगी ... गर्मी में तुम्हारी छाया कहाँ से आएगी 
बारिश से बच कर कहाँ खड़े होएंगे....  मंद मंद हवा कहाँ से होके गुजरेगी 
पानी को कौन रोकेगा ...रुक जाओ तुम ...तुम्हे तो मैं समझा सकती हूँ पर 
आदमी को कैसे समझाएं ....

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